बिहार के इस गांव ने खुद बनाई सड़कों और पानी की व्यवस्था – बिना किसी सरकारी मदद!

✍️ रिपोर्ट: लोकव्यू टीम | 📍 स्थान: बिहार, भारत

तारीख: 29 जुलाई 2025


🔎 परिचय

जब सरकारी योजनाएं केवल कागज़ पर रह जाएं और ज़मीनी हकीकत बदलने में नाकाम हो जाएं, तब जनता ही अपना नेतृत्व करती है। बिहार के सिवान जिले के एक छोटे से गांव रामपुर पश्चिमी टोला ने वो कर दिखाया जो अक्सर बड़े नेता और अधिकारी नहीं कर पाते।


🚧 समस्या: टूटी सड़कें, गंदा पानी

गांव में पिछले 10 सालों से सड़क निर्माण की मांग की जा रही थी। बरसात में सड़कें कीचड़ में तब्दील हो जाती थीं। पीने के पानी की स्थिति और भी खराब थी – हैंडपंप या तो सूखे थे या गंदे पानी से भरे। गांव वालों ने कई बार पंचायत और प्रशासन से शिकायत की, लेकिन हर बार आश्वासन मिला, समाधान नहीं।


🤝 समाधान: गांव वालों ने खुद उठाई ज़िम्मेदारी

2025 की शुरुआत में गांव के बुजुर्गों, युवाओं और महिलाओं ने मिलकर एक पंचायत बैठक की। ‘चलो हम खुद करें’ इस सोच के साथ उन्होंने चंदा इकट्ठा करना शुरू किया। हर परिवार से ₹100 से ₹1000 तक का योगदान लिया गया।

कुल चंदा: ₹1.8 लाख

कार्य अवधि: 22 दिन

श्रमदान: 50 से अधिक ग्रामीणों ने मिलकर काम किया


💧 पानी की व्यवस्था

गांव की एक सामाजिक संस्था ‘जनहित सेवा समिति’ की मदद से दो नए बोरिंग कराए गए और एक सार्वजनिक टंकी लगाई गई। अब हर घर तक पीने का साफ पानी पहुँच रहा है।


🎤 लोगों की राय

राजू यादव (ग्रामवासी):
“हमने सोचा, इंतज़ार करते-करते ज़िंदगी बीत जाएगी। अब हम खुद आगे बढ़े।”

सीमा देवी (महिला सदस्य):
“हमने घर के बर्तन बेचे, लेकिन सड़क बनवा दी। अब बच्चे स्कूल जा पाते हैं।”


📢 सवाल सरकार से

जब जनता खुद सड़क और पानी का इंतज़ाम कर सकती है, तो सरकार की जिम्मेदारी कहाँ खो गई? ये रिपोर्ट केवल एक गांव की नहीं, बल्कि उस सोच की मिसाल है जो पूरे देश में फैलनी चाहिए।


✅ निष्कर्ष

रामपुर पश्चिमी टोला ने यह साबित किया है कि जब इरादा मजबूत हो, तो बिना सरकार के भी बदलाव लाया जा सकता है। ऐसे उदाहरण ‘लोकशक्ति’ और ‘स्वराज’ की असली तस्वीर हैं। यह कहानी न केवल प्रेरणा देती है, बल्कि सिस्टम पर सवाल भी उठाती है।



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